होलिका दहन 2025 – होलिका दहन की कथा और होलिका दहन का महत्व
नई दिल्ली, 13 मार्च 2025: होली के पावन पर्व के अवसर पर आज पूरे देश में होलिका दहन का त्योहार धूमधाम से मनाया गया। होलिका दहन, जिसे छोटी होली के नाम से भी जाना जाता है, होली के एक दिन पहले मनाया जाता है। इस दिन लोग बुराई पर अच्छाई की जीत का संकल्प लेते हैं और होलिका दहन की परंपरा को निभाते हैं।
होलिका दहन की तैयारियाँ
देश भर के गली-मोहल्लों में लोगों ने लकड़ी, उपले और सूखे पत्तों से होलिका की विशाल आग की ढेरी तैयार की। शाम के समय सभी ने एकत्रित होकर होलिका दहन किया और इसके चारों ओर परिक्रमा करते हुए प्रार्थना की। होलिका दहन के दौरान लोगों ने बुराई को जलाने और अच्छाई को अपनाने का संकल्प लिया।
धार्मिक महत्व
होलिका दहन का धार्मिक महत्व बहुत गहरा है। पौराणिक कथा के अनुसार, भक्त प्रह्लाद की रक्षा के लिए भगवान विष्णु ने होलिका को जलाकर भक्ति की जीत का संदेश दिया था। इसी कथा को याद करते हुए लोग होलिका दहन करते हैं और अगले दिन रंगों से भरी होली मनाते हैं।
सुरक्षा के इंतजाम
इस वर्ष होलिका दहन के मौके पर प्रशासन ने सुरक्षा के विशेष इंतजाम किए थे। आग से होने वाले नुकसान से बचने के लिए लोगों को सावधानी बरतने की सलाह दी गई थी। अग्निशमन विभाग की टीमें हर जगह तैनात थीं ताकि किसी भी प्रकार की दुर्घटना से बचा जा सके।
पर्यावरण संरक्षण का संदेश
इस वर्ष होलिका दहन के दौरान पर्यावरण संरक्षण का संदेश भी दिया गया। कई स्थानों पर लोगों ने प्लास्टिक और हानिकारक पदार्थों को जलाने से परहेज किया और प्राकृतिक चीजों का उपयोग करके होलिका दहन किया। इससे पर्यावरण को नुकसान पहुँचाने से बचा गया।
होली की तैयारियाँ
होलिका दहन के बाद अब लोग रंगों से भरी होली मनाने की तैयारियों में जुट गए हैं। कल पूरे देश में रंग, गुलाल और पिचकारियों के साथ होली का त्योहार धूमधाम से मनाया जाएगा। लोग एक-दूसरे को रंग लगाकर और मिठाइयाँ खिलाकर इस खुशी के मौके का आनंद लेंगे।
होली का त्योहार प्रेम, भाईचारे और एकता का संदेश देता है। इस अवसर पर सभी को एक-दूसरे के साथ मिलजुल कर रहने और बुराई को दूर करने का संकल्प लेना चाहिए।
होलिका दहन की कथा
प्राचीन काल में हिरण्यकश्यप नाम का एक अत्यंत बलशाली और अहंकारी असुर राजा था। वह स्वयं को भगवान से भी बड़ा मानता था और चाहता था कि सभी लोग केवल उसकी पूजा करें। हिरण्यकश्यप ने अपने राज्य में भगवान विष्णु की पूजा करने पर पाबंदी लगा दी थी। लेकिन उसका अपना पुत्र प्रह्लाद, भगवान विष्णु का परम भक्त था। प्रह्लाद ने अपने पिता की आज्ञा का पालन करने से इनकार कर दिया और भगवान विष्णु की भक्ति में लीन रहा।
हिरण्यकश्यप को यह बात बिल्कुल पसंद नहीं आई। उसने प्रह्लाद को भगवान विष्�ानु की भक्ति छोड़ने के लिए कई बार समझाने की कोशिश की, लेकिन प्रह्लाद नहीं माना। इसके बाद हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को मारने के कई प्रयास किए, लेकिन हर बार भगवान विष्णु ने प्रह्लाद की रक्षा की।
अंत में, हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका से मदद मांगी। होलिका को वरदान प्राप्त था कि वह आग में नहीं जल सकती। हिरण्यकश्यप ने होलिका को आदेश दिया कि वह प्रह्लाद को गोद में लेकर आग में बैठ जाए। होलिका ने ऐसा ही किया। वह प्रह्लाद को गोद में लेकर आग में बैठ गई। लेकिन भगवान विष्णु की कृपा से प्रह्लाद सुरक्षित रहा, जबकि होलिका अपने वरदान के बावजूद जलकर भस्म हो गई। यह घटना बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक बन गई।
होलिका दहन का महत्व
होलिका दहन की यह कथा हमें सिखाती है कि अहंकार और बुराई चाहे कितनी भी शक्तिशाली क्यों न हो, अंत में सत्य और भक्ति की ही जीत होती है। होलिका दहन के दिन लोग होलिका की आग जलाकर बुराई को नष्ट करने और अच्छाई को अपनाने का संकल्प लेते हैं। यह त्योहार हमें एकता, प्रेम और सद्भाव का संदेश देता है।
होलिका दहन के बाद अगले दिन रंगों का त्योहार होली मनाया जाता है, जो खुशियों और उत्साह का प्रतीक है। इस तरह होलिका दहन और होली का त्योहार मिलकर हमें जीवन के सकारात्मक पहलुओं को अपनाने की प्रेरणा देते हैं।
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